Wednesday, November 5, 2014

सफाई की सही राह



(भरत झुनझुनवाला)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाए गए सफाई अभियान का स्वागत किया ही जाना चाहिए। मगर यह अभियान तब तक सफल नहीं होगा जब तक नगरपालिका की कूड़ा निस्तारण व्यवस्था दुरुस्त नहीं होगी। सड़क पर झाड़ू लगाकर कूड़े को किनारे करने का लाभ तब ही है जब किनारे से उसे हटा लिया जाए। हटाया नहीं गया तो कूड़ा पुन: सड़क पर फैल ही जाएगा। हाल ही में ट्रेन में सफर करने का मौका मिला। स्लीपर कोच का कूड़ेदान भरा हुआ था। प्लेटफार्म पर कूड़ेदान नहीं था, मजबूरन कूड़े को बाहर फेंकना पड़ा। यदि हर केबिन में कूड़ेदान होता और उसकी नियमित रूप से सफाई होती तो उसे बाहर नहीं फेंकना पड़ता।

इस दिशा में आंध्र प्रदेश की बाब्बिली नगरपालिका के प्रयास सराहनीय हैं। यहां घर से दो प्रकार का कूड़ा अलग-अलग एकत्रित किया जाता है। किचन से निकले गीले कूड़े को पहले एक पार्क में निर्धारित स्थान पर पशुओं के खाने के लिए रख दिया जाता है। बत्तख द्वारा मछली, सुअर द्वारा किचन वेस्ट तथा कुत्ते द्वारा मीट को खा लिया जाता है। शेष को कम्पोस्ट करके खाद के रूप में बेच दिया जाता है। कागज, प्लास्टिक तथा मेटल को छांटकर कंपनियों को बेच दिया जाता है जहां इन्हें रिसाइकिल कर दिया जाता है। जो थोड़ा-बहुत बच जाता है उसे लैंडफिल में डाल दिया जाता है। आंध्र की ही सूर्यापेट नगरपालिका एक कदम और आगे है। यहां किराना दुकानों, मीट विक्रेताओं तथा होटलों द्वारा क्रेताओं को अपना थैला लाने पर एक से पांच रुपये की छूट दी जाती है। इन शहरों की सड़कें आज पूरी तरह साफ हैं। यहां झाड़ू लगाने की जरूरत कम ही है, क्योंकि नगरपालिका अपना काम कर रही है।

जो कूड़ा कंपोस्ट अथवा रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है उसे लैंडफिल में डाल दिया जाता है या फिर जलाकर इससे बिजली उत्पन्न की जाती है। लैंडफिल के लिए जगह ढूंढ़ना कठिन होता है, क्योंकि कोई मोहल्ला अपने आसपास कूड़े का ढेर नहीं देखना चाहता है। मेरे एक जानकार को गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में एक फ्लैट पसंद आया, किंतु उन्होंने उसे नहीं खरीदा। कारण कि उसके सामने विशाल लैंडफिल था, जिस पर हजारों चीलें मंडराती रहती थीं।

कूड़े को जलाने की अलग समस्या है। दिल्ली के ओखला में 1700 टन कूड़ा जलाकर 18 मेगावाट बिजली प्रतिदिन बनाई जा रही है, लेकिन स्थानीय लोग इससे खुश नहीं हैं। कूड़ा जलाने से जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है। जहरीली राख उड़कर घरों पर गिरती है। लोगों ने नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल में इस बिजली कंपनी के विरुद्ध याचिका दायर कर रखी है। जो कूड़ा रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है वह मुख्यत: दो तरह का होता है। चाकलेट रैपर तथा आलू चिप्स के पैकेट प्लास्टिक तथा मेटल को आपस में फ्यूज करके बनाए गए हैं। इन्हें प्लास्टिक की तरह रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इनमें मेटल होता है और मेटल की तरह गलाया नहीं जा सकता है, क्योंकि इनमें प्लास्टिक होता है। इसी तरह अकसर कागज के डिब्बों को ऊपर से प्लास्टिक से लैमिनेट कर दिया जाता है। कुछ समय पूर्व मैं एक गत्ता फैक्ट्री चलाता था। फैक्ट्री के लिए सड़क से उठाए गए कागज के कूड़े को कच्चे माल के तौर पर खरीदा जाता था। कई मजदूर लगाकर इस कूड़े में से लैमिनेटेड कागज की छंटाई करते थे और इसे बॉयलर की फर्नेस में जलाया जाता था। कारण कि यह मशीन को जाम कर देता था। इस प्रकार के कूड़े का उत्पादन ही बंद कर दिया जाना चाहिए। तब प्लास्टिक, मेटल और कागज को अलग-अलग रिसाइकिल किया जा सकेगा। तभी सौ प्रतिशत कूड़े का निस्तारण किया जा सकता है। इसे जलाकर जहरीली गैसों को वायुमंडल में छोड़ने अथवा लैंडफिल बनाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी मंत्रलय को यह रास्ता पसंद नहीं है। इनका ध्यान बिजली के उत्तरोत्तर अधिक उत्पादन मात्र पर केंद्रित है। यदि पूरा कूड़ा रिसाइकिल हो जाएगा तो बिजली का निर्माण नहीं हो पाएगा। वर्तमान में कूड़े से बिजली बनाने पर मंत्रलय द्वारा 10 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट की सब्सिडी दी जा रही है। कूड़ा सौ प्रतिशत रिसाइकिल हो जाएगा तो मंत्रलय का यह धंधा ठप पड़ जाएगा। यूं समङिाए कि यह सब्सिडी कूड़े को रिसाइकिल करने के लिए नहीं दी जा रही है।

नगरपालिकाओं की समस्या वित्तीय है। दो तरह के कूड़े को अलग-अलग एकत्रित करने, छांटने और कंपोस्ट बनाने में खर्च ज्यादा आता है। कंपोस्ट और छंटे माल की बिक्री से आमदनी कम होती है। बाब्बिली नगरपालिका द्वारा कूड़े के निस्तारण पर किए गए खर्च का मात्र 13 प्रतिशत इन माल की बिक्री से अर्जित किया जा रहा है। सूर्यापेट का इन मदों पर वार्षिक खर्च 418 लाख है, जबकि आमदनी मात्र सात लाख रुपये है। अर्थ हुआ कि कूड़े का पूर्णतया पुन: उपयोग तब ही संभव है जब नगरपालिकाओं को वित्तीय मदद दी जाए। विषय केवल सफाई का नहीं है। कूड़े के सफल निस्तारण से जनता का स्वास्थ्य सुधरेगा। नगरपालिका कर्मियों द्वारा कूड़े को हटाने और नालियों को साफ करने से मच्छर पैदा होते हैं। मलेरिया तथा डेंगू जैसे रोगों का विस्तार होता है। कूड़े के निस्तारण से हमारे शहर सुंदर हो जाएंगे और विदेशी पर्यटक ज्यादा संख्या में आएंगे। फुटपाथ कूड़ा रहित होने से लोग फुटपाथ पर चलेंगे और रोड एक्सीडेंट कम होंगे। इन लाभों का आकलन किया जाए तो सरकार द्वारा स्वच्छ नगरपालिका के लिए सब्सिडी देना आर्थिक दृष्टि से भी उचित होगा।

अंतिम विषय कूड़ा बीनने वालों का है। आपने देखा होगा कि सड़क अथवा रेल पटरी के किनारे से लोग कूड़ा बीन कर बड़े झोले में भरकर कबाड़ियों को बेचते हैं। समस्या है कि इनके लिए खास किस्म के कूड़े को उठाना ही लाभदायक होता है। शेष कूड़े को वहीं छोड़ दिया जाता है यद्यपि इसे भी रिसाइकिल किया जा सकता है। इस दिशा में पुणो शहर हमारा मार्गदर्शन करता है। वहां कूड़ा बीनने वाले से छांटा हुआ संपूर्ण कूड़ा खरीद लिया जाता है। इनके द्वारा सड़कों, घरों तथा आफिसों से अधिकतर कूड़ा उठा लिया जाता है। शहर स्वयं साफ हो जाता है। देश को स्वच्छ बनाने के लिए कुछ विशेष कदम उठाने होंगे। पहला कि नगरपालिकाओं द्वारा कूड़ा कर्मियों पर सख्ती की जाए और इनके कार्य की ऑडिट हो। दूसरा, सभी ऐसे पैकिंग के सामान का उत्पादन बंद कर दिया जाए जिन्हें रिसाइकिल न किया जा सके। तीसरा नगरपालिकाओं को 100 प्रतिशत कूड़े को रिसाइकिल करने के लिए इंसेंटिव दिया जाए। चौथा, कूड़ा बीनने वालों के कल्याण एवं सम्मान के लिए इनके द्वारा एकत्रित संपूर्ण कूड़े को खरीदने की व्यवस्था की जाए। इन बुनियादी व्यवस्थाओं को स्थापित करने के बाद ही सड़क पर झाड़ू लगाना सार्थक होगा।


(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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