Wednesday, November 5, 2014

आतंक के इस रूप पर क्यों आंखें रहे मूंद?


जैमिनी भगवती

पश्चिमी दुनिया के देश आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने के इच्छुक क्यों नहीं नजर आते? इन देशों के इस विरोधाभासी नजरिये से रूबरू करा रहे हैं जैमिनी भगवती

एक वरिष्ठï ब्रिटिश अधिकारी ने कुछ वक्त पहले मुझसे जोर देकर कहा था कि अगर पाकिस्तान को पहले से पता था कि ओसामा बिन लादेन ऐबटाबाद (पाकिस्तानी सैन्य अकादमी से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित) में छिपा था, तो वह एक दुष्टï राष्टï्र है। वहीं अगर पाकिस्तान को यह पता नहीं था कि ओसामा पांच साल से उस जगह पर रह रहा है तो फिर वह एक विफल राष्टï्र है। निजी तौर पर ऐसी बातचीत के बावजूद अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों ने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान से ऐसी बातें नहीं कही हैं।
पश्चिमी देश इराक, लीबिया, सीरिया और अफगानिस्तान पाकिस्तान की सीमा पर जिस तरह बमबारी करते रहे हैं और विद्रोहियों से हथियार डलवाने के लिए जैसी कार्रवाई करते रहे हैं, उस दौरान आतंकी गतिविधियों में भागीदारी को लेकर जो कुछ कहा जाता है उससे भी यह बात स्पष्टï होती है। ऐसे अवसरों पर भारतीय विश्लेषकों की हताशा को समझा जा सकता है क्योंकि उनको लगता है कि पाकिस्तान से होने वाले आतंकवाद की जानबूझकर अनदेखी की जा रही है। पश्चिमी देशों की निजी स्वीकारोक्ति लेकिन सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ कदम उठाने की अनिच्छा का जो विरोधाभास है उसकी वजह यह है कि पश्चिमी देश परमाणु क्षमता संपन्न पाकिस्तान से सामरिक नीति के तहत एक स्तर पर संबंध कायम रखना चाहते हैं।
इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बात की जाए तो पाकिस्तान उसमें शामिल सबसे बड़े देशों में से एक है। पाकिस्तान इकलौता ऐसा इस्लामिक मुल्क है जिसके पास परमाणु हथियार हैं और जिसके पास भारी भरकम पेशेवर सेना है। ओआईसी पर उसका खासा प्रभाव है और खासतौर पर पश्चिम एशिया और खाड़ी देशों पर। अधिकांश विकसित पश्चिमी देशों में बड़ी संख्या में मुस्लिम अल्पसंख्यक मौजूद हैं और उनको उनकी भावनाओं का ख्याल रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए ब्रिटेन की 28 लाख की मुस्लिम आबादी में से कई मुसलमान पीढिय़ों से बेरोजगार हैं। ऐसे में उनकी सोच थोड़ी जटिल और कट्टï हो गई है। उन्हें आतंकी गतिविधियों में शामिल करना आसान है।
थॉमस फ्रीडमैन ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा कि भारत में खामीयुक्त लेकिन जीवंत लोकतंत्र की वजह से ही वहां के मुसलमानों में से बहुसंख्य खुद को पहले भारतीय मानते हैं। बहरहाल, भारत खुद भी समस्याओं से पूरी तरह मुक्त नहीं है। देश की करीब 50 लाख आबादी खाड़ी देशों में काम करती है और वहां से भारी मात्रा में धन देश में आता है। आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि वर्ष 2013 में खाड़ी सहयोग परिषद यानी जीसीसी के सदस्य छह देशों का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट का 221 फीसदी था। जबकि उनकी सक्रिय सैन्य शक्ति भारत के 27 फीसदी के बराबर है।
वर्ष 2013 में देश का रक्षा आयात वैश्विक आयात के 15 फीसदी के बराबर रहा। इसमें काफी खरीदारी रूस से की गई। जीसीसी के छह देशों में से दो देशों सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने कुल वैश्विक रक्षा उपकरणों का 8 फीसदी आयात किया। ये सारी खरीद पश्चिमी देशों से की गई।
पाकिस्तान ओआईसी का एक सक्रिय सदस्य है और ओआईसी के दस्तावेजों में भारत विरोधी संदर्भ मिलते हैं। ओआईसी की फरवरी 2013 में काहिरा में आयोजित शिखर बैठक की कुछ बातों पर गौर करें:
हम जम्मू-कश्मीर के लोगों के आत्म निर्णय के वैध अधिकार के प्रति अपना सैद्घांतिक समर्थन दोहराते हैं। यह समर्थन संयुक्त राष्टï्र और कश्मीर के लोगों की भावना के अनुरूप ही है। हम कश्मीर में सेना के इस्तेमाल और भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा भारत अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन के प्रति गहरी चिंता प्रकट करते हैं।
पश्चिमी देशों के पर्यवेक्षकों की नजर से यह बात छिपी नहीं होगी कि ओआईसी की ऐसी घोषणाओं में पाकिस्तान का प्रभाव काफी हद तक काम करता है।
सऊदी अरब के नेतृत्व में ओआईसी देशों ने सन 1975 में इस्लामिक विकास बैंक (आईडीबी) की स्थापना की थी। यह देश इस्लामिक बैंकिंग के सिद्घांतों का पालन करता है। वैश्विक इस्लामिक बैंकिंग परिसंपत्तियों के बारे में अनुमान है कि वे 2012 में 11 खरब डॉलर तक पहुंच चुकी थीं। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की सॉवरिन वेल्थ फंड (एसडब्ल्यूएफ) क्रमश: 780 और 800 अरब डॉलर होने की बात कही गई है। तेल एवं गैस निर्यात की बात करें तो खाड़ी देशों में इसकी बदौलत चालू खाता अधिशेष सुधरता रहेगा। जाहिर है इस्लामिक बैंकिंग और जीसीसी के एसडब्ल्यूएफ का आकार बढ़ता रहेगा।
ऐसे फंड बहुत बड़े पैमाने पर न्यूयॉर्क, लंदन और फ्रैंकफर्ट जैसे बड़े वित्तीय केंद्रों में निवेश किए जा रहे हैं। इस्लामिक बैंकिंग को पश्चिमी देशों का खुला समर्थन है और यही वजह है कि इन देशों के राजनीतिक वर्ग के लोग मुस्लिम समुदाय के लोगों की भावनाओं का ख्याल रखने पर विशेष तौर पर तवज्जो देते हैं।
भारत में कुछ म्युचुअल फंड इस्लामिक वित्तीय कायदों के मुताबिक निवेश करते हैं। जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन अथवा जीआईसी एक इस्लामिक रीएश्योरेंस योजना चलाती है और केरल सरकार के स्वामित्व वाले केएसआईडीसी ने अल बरकाह फाइनैंशियल सर्विसिज लिमिटेड की स्थापना की है। बहरहाल भारतीय बैंकिंग कानून और नियमों में इसके लिए जरूरी बदलाव नहीं हुए हैं।
लब्बोलुआब यह कि अमेरिका और ब्रिटेन समेत तमाम पश्चिमी देशों के पाकिस्तान से काम करने वाले चरमपंथी तत्त्वों के प्रति व्यवहार का अतिसरलीकरण करने से बचने की आवश्यकता है। बल्कि ऐसा पश्चिमी देशों द्वारा अपनी आर्थिक, सुरक्षा संबंधी तथा सामरिक चिंताओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

यही वजह है कि भारत के लिए पश्चिम को यह समझाना जरूरी हो गया हे कि पाकिस्तान से पनप रहे आतंकवाद की अनदेखी करना उनके लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता है। पाकिस्तान में आतंकवाद के केंद्रों की अनदेखी करके पश्चिमी देश अपने लिए ही मुसीबत को न्योता दे रहे हैं क्योंकि इराक, अफगानिस्तान आदि में छिड़ी इस लड़ाई में उनके लोग मारे जा रहे हैं और बहुत बड़े पैमाने पर उनका धन भी खर्च हो रहा है। इसके अलावा भारत को भी जीसीसी फंड को ध्यान में रखते हुए इस्लामिक बैंकिंग को लेकर थोड़ा दूरदर्शी रवैया अपनाना होगा।

No comments:

Post a Comment